हैदराबाद: मर्दों को सोचना चाहिए कि वे बलात्कार क्यों करते हैं?: नज़रिया

वाल एक है और सालों से घूम रहा है. हर बार जब बलात्‍कार की कोई घटना सुर्ख़‍ियों में आती है तो यह सवाल घूमने लगता है.

दिक्‍कत यह है कि इसका जवाब एक नहीं है. हम सभी, सब जवाब पर एकमत नहीं हैं. कुछ जवाब मर्दाना समाज की तरफ़ से हैं. कुछ जवाब स्‍त्र‍ियों की ओर से हैं. कुछ जवाब बहुत ज़्यादा व्‍यापक और गंभीर सवाल खड़े करते हैं. हम भी कोशिश करते हैं. मुकम्‍मल जवाब का दावा नहीं, कोशिश ही है.

किसी की इच्‍छा के ख़िलाफ़ किया गया काम बलात्‍कार है. किसी पर अपनी ख्‍़वाहिश को जबरन थोपना बलात्‍कार है. यक़ीनन यह क़ानूनी परिभाषा नहीं है. उस पर चर्चा फिर कभी. हम अभी कुछ मोटा-मोटी बात करते हैं.

सवाल यही है कि मर्द बलात्‍कार क्‍यों करते हैं?

हम मर्द बलात्‍कार करते हैं क्‍योंकि हम 'अपनी' यौन इच्‍छा पूरी करना चाहते हैं. इसमें दूसरे की इच्‍छा की कोई जगह नहीं है. हम मर्द बलात्‍कार करते हैं क्‍योंकि हम अपनी तनाव भरी उत्‍तेजना को किसी और की इच्‍छा और रज़ामंदी के बग़ैर शांत करना चाहते हैं.

हम मर्द बलात्‍कार करते हैं क्‍योंकि हम अपनी क्षणिक उत्‍तेजना को शांत करने के लिए एक जगह तलाशते हैं. स्‍त्री शरीर में हमें वह जगह दिखाई देती है. मगर कई बार यह जगह हमें छोटे बच्‍चे-बच्‍च‍ियों और जानवरों में भी साफ़ नज़र आती है.

हम मर्द बलात्‍कार करते हैं क्‍योंकि हम स्‍त्री देह को काबू में करना चाहते हैं. हम मर्द बलात्‍कार करते हैं, क्‍योंकि हम स्‍त्री देह को अपनी निजी जायदाद मानते हैं.

हम मर्द बलात्‍कार करते हैं, क्‍योंकि हम बदला लेना चाहते हैं. हम मर्द बलात्‍कार करते हैं क्‍योंकि हम अपने से अलग जाति या धर्म के मर्दों को सबक सिखाना और नीचा दिखाना चाहते हैं.

हम मर्द बलात्‍कार करते हैं क्‍योंकि हम अपने से अलग जाति या धर्म या समुदाय की 'इज्‍़ज़त' को मटियामेट करना चाहते हैं.

हम मर्द बलात्‍कार करते हैं और बलात्‍कार के लिए रिश्‍ते बनाते हैं. रिश्‍तों को सुंदर-सा नाम देते हैं. फिर बलात्‍कार का हक़ हासिल करते हैं. फिर हक़ के साथ बलात्‍कार करते हैं.

हम मर्द हैं और इसलिए अक्सर हम मजबूर और कमजोर को तलाशते हैं. चॉकलेट पर फुसल जाने वाले की खोज में रहते हैं. हम मर्द हैं और हमारी नीयत में बलात्‍कार है.

हम मर्द हैं. चालाक हैं. रंग बदलने में बहुत माहिर हैं. इसलिए बलात्‍कार करते हैं और बलात्‍कारी भी नहीं कहलाते. रिश्‍ते में हक से बलात्‍कार करते हैं.

सरेआम बलात्‍कार करते हैं और धर्म के रक्षक कहलाते हैं. हम बंदूक की ज़ोर पर बलात्‍कार करते हैं और 'अपनी' श्रेष्‍ठ जाति के श्रेष्‍ठ योद्धा बन जाते हैं. हम जिनके साये से भी कोसों दूर रहना चाहते हैं, उनकी देह की ख़ूश्‍बू के लिए हर ज़ोर आज़ामइश करते हैं. हम बलात्‍कार करते हैं. हम मर्द हैं.

हम मर्द बलात्‍कारी हैं क्‍योंकि हमें हिंसा में यक़ीन है इसलिए हम अहिंसा को नार्मदगी मानते हैं. अहिंसा की बात करने वाले मर्दों को हम नामर्द, नपुंसक, डरपोक, कायर कहकर उनकी खिल्‍ली उड़ाते हैं.

हम बलात्‍कारी मर्द हैं और हम चढ़ाई को और चढ़ कर मारने को 'मर्दानगी' की पहचान मानते हैं. सदियों से दूसरे मोहल्‍लों पर चढ़ते रहे हैं, दूसरे राज्‍यों पर चढ़ते रहे हैं, दूसरे देशों पर चढ़ाई करते रहे हैं इसलिए आज भी चढ़ाई को ही 'असली मर्दानगी' की निशानी मानते हैं और चढ़ाई तो मर्ज़ी के खिलाफ़ होती है. यही तो बलात्‍कार है.

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